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Saturday, October 17, 2015

नारी : देवी या साधन ?

दिल्ली मे आए दिन बलात्कार की घटनाओ पर मीडिया और सामाजिक संगठन ऐसे प्रतिक्रिया देते है जैसे ये सब पुलिस की लापरवाही की वजह से हो रहा है लेकिन पुलिस हर एक नुक्कड़ चौराहे पर नही खड़ी हो सकती है .ये सब हमारी कमी है की हम अपने बच्चो को सही मूल्य नही दे पाए,समाज मे नारी का सही रूप नही प्रतिस्थापित कर पाए,आज नही,पिछले कई सालो से

औरतो की बढ़ती हिंसक प्रवति हमारे सामाजिक ढाँचे को दर्शाती है ,जिसमे नारी सिर्फ़ उपभोग की वस्तु है,एक धीमा जहर सालो से समाज को दिया जा रहा है की पुरुष इस समाज का मलिक / विधाता है और नारी उसके भोग के लिए बनी है,कभी माँ बन के उसे पाले तो कभी बीवी बन के सालो साल उसका बिखरा हुआ घर संभाले,कभी बहन बन के चुहल करे तो कभी बेटी बन के जीवन की मुस्कान बने फिर भी उसका रोल रहता हमेशा सेवक का ही है जिसे कुछ भी करने के लिए मालिक पुरुष की आग्या या सहमति लेनी होती है ,वरना मिनट मे उससे बद्जात बता दिया जाता है

औरतो की प्रति बढ़ती हिंसक घटनाए फिर वो चाहे मूक मानसिक प्रताड़ना ही क्यूँ ना हो,उसके लिए ज़िम्मेदार पुलिस नही ये समाज है जो हमेशा बच्चो को ये समझता है छोटे से की ,मर्द इस समाज का मलिक है और नारी का अस्तितवा सिर्फ़ उसे खुश करने के लिए है| शायद ही कोई ये बताता होगा बच्चे को छोटे से की ,हम नारी की पूजा विभिन्न देवी रूपो मे क्यूँ करते है,करते सब है ,लेकिन क्यूँ करते है ,जिस दिन हम अपने बच्चो को ये समझा ले गये शायद उस दिन सही मायनो मे देवी माँ को हमारी पूजा स्वीकार हो जाएगी वरना घंटो देवी माँ के आगे हाथ जोड़ के बैठना बेकार है

नारी के प्रति बढ़ती हिंसा पर ना संसद मे बहस होगी ,ना जंतर मंतर के बाहर धरना,ना कोई बुधीजीवी पुरूस्कार वापस करेगा ना मानव अधिकार संस्थान चिल्लाएँगे, क्यूंकी सब लोगो ने मिल के इस आत्याचार को मूक सहमति दे रखी है 
 

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